Wednesday, October 21, 2009

महाराष्ट्र चुनाव

१३ अक्टूबर को महाराष्ट्र में, २८८ विधान सभा सीटों पर उम्मीदवारों के चुनाव को वोट डाले गये. पूरे राज्य में ६० फ़ीसदी वोट डाले गये. मुंबई में पूरे राज्य की तुलना में मात्र ५२ फ़ीसदी मतदान हुआ, मुंबई के पाँश माने जाने वाले क्षेत्रों में बहुत ही कम लोगों ने मतदान में हिस्सा लिया. ये ऐसे लोग हैं जो देश की अर्थव्यस्था के शिल्पकार हैं. अब सवाल उठता है कि उच्च-वर्ग या उच्च- मध्य वर्ग के लिये लोकतंत्र की भूमिका समाप्त हो गयी है? या उन्हे लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं की आवश्यकता नही रही.
गढ़चिरौली, जहाँ नक्सल संगठनों ने मतदान का बहिष्कार किया वहां ६२ फ़ीसदी मतदान हुआ. इस प्रतिशत को मीडिया जगत ने शुभ संकेतो के रूप मे ले, खूब वाह-वाही लूटी. यह खबर सरकार और मीडिया तंत्र के उस गठजोड़ का हिस्सा हो सकता है जिसके तहत अर्से से एक मुहिम चलाई जा रही है कि जहां-जहां नक्सल आंदोलन है वहां लोकतंत्र की सफ़लता से संघिय व्यवस्था को बल मिलता है? मीडिया के गलियारों से एक दूसरे तरह की खबरे भी आती है जो मामले का नया रूप उजागर करती है. १४ अक्टूबर को नागपुर से निकलने वाले प्रमुख अखबारों के विदर्भ संस्करणों में छ्पी खबरे इस मतदान प्रतिशत के गुणा-गणित के खेल को उजागर करती है. "बंदूक की नोक पर जबरन मतदान" जैसी खबरे मोटे-मोटे हेडिग्स में प्रकाशित होती है. गड़चिरौली जिले की ’आरमोरी’ विधान सभा क्षेत्र के अन्तर्गत जहां निर्वाचन आयोग की मतदान देने की सारी सुविधाएं होते हुए भी आदिवासी, वोट के लिये अपने घरों से बाहर नही निकलते है. पुलिस और अर्ध-सैनिक बलों के ४०-५० जवान बंदूक की नोक पर उन्हे जबरिया वोट देने को बिवस करते है. वहां उपस्थित पत्रकारो-छायाकारों का दल पूरे वाकए को कवर करने का प्रयास करता है तो सबको, पी.एस.आई. राहुल गायकवाड़ के नेतृत्व में, दौडा़-दौडा़ कर पीटा जाता है. आदिवासियों का भी गणमान्य मुंबई वालों की तरह चुनाव जैसी चिजों पर से बिश्वास उठ गया है हालाकी दोनो के अपने-अपने आर्थिक, सामाजिक कारण है.
चलते-चलते आखिरी बात वर्धा की. यह शहर जो गाँधी की कर्मस्थली रहा है और जहां से देश के स्वतंत्रता आंदोलन को निर्णायक मोड़ दिया गया, जहां गांधी के नाम पर कई संस्थाए और आश्रम सक्रिय है वहां ठाकुर दास बंक द्वारा संचालित आश्रम के १३ लोग मतदान प्रक्रिया का बहीष्कार करते हैं. वैसे यह, वह आश्रम नही जहां गांधी रहा करते थे, किंतु अखबारों ने भ्रामक हेडिग्स के साथ इस खबर को छापा और पूरी न्युज में आश्रम की मूल पहचान को छुपाने का प्रयास किया गया. समाचार पत्रों द्वारा खबरों को सनसनी खेज बनाने का, यह पुराना हथकंडा रहा है. खैर बात ठाकुर दास बंक और अविनाश काकडे़ जैसे गांधीवादी विचारकों की. मतदान बहिष्कार के कारणों मे बंक ने लोकतांत्रिक प्रणाली पर सवालिया निसान लगते हुए कहा कि अब जन-तंत्र में जनता को मूलभूत सुविधाए देने का काम नही किया जाता है यह मात्र शासन करने वाले कुछ लोगों तक ही सीमित हो गया है जिसका वे बेजा इस्तेमाल कर रहे है.
महाराष्ट्र के तीन हिस्से और लोगों की लोकतंत्र के प्रति अपनी मान्यताए. एक चीज जो सभी में सामान्य है वह लोकतंत्र के प्रति अरुचि. सवाल है चुनाव किसका और किसके लिए.

Tuesday, August 25, 2009

हिंद युग्म पर प्रकाशित कविता

http://kavita.hindyugm.com/2009/08/aurat-nahin-utar-paati-kechul.html

Friday, August 21, 2009

पोला : बिदर्भ के लोकसस्कृति का त्योहार

नागपन्चमी से भारत मे त्योहारो कि शुरूवात होने लगती है , भारत जिसके बारे मे कहा जाता है कि ३०० किलोमीटर पर यहा पानी - बानी (भाषा) मे अन्तर दिखाइ देता है यह अन्तर वहा के जनजीवन कि लोक सस्कृतिय अवस्थाओ मे भी देखा जा सकता है खासकर वहा मनाए जाने वाले त्योहारो मे. लोक जीवन और लोक सस्कृति से सम्भन्धित ऐसा ही एक त्योहार "पोला"बिदर्भ के अन्चलो मे बड़े ही जोरदार तरिके से मनाया जाता है. "पोला" कृषि जीवन से प्रेरित त्योहार है. भारत एक कृषि प्रधान देश है और एक किसान के लिये पशु (बैल) धन उसकी सबसे बड़ी पुजी होती है.पशुओ (बैलो) के माध्यम से ही किसान धरती का सिना चिरकर अनाज का उत्पादन करता है, भावनात्मक स्तर पर बैल किसान के लिये कितने महत्वपुर्ण होते है इसकी ब्याखा प्रेमचन्द ने गोदान मे कि है खैर ये सब चर्चाए बाद के लिये हा तो पोला ऐसा त्योहार है जिसका किसान साल भर बड़ी बेसब्री से इन्तजार करते है.अमीर- गरीब सभी बड़े चाव और मस्ती से भादव महिने मे इस त्योहार को दो दिनो तक मनाते है. इस दिन किसान अपने बैलो को दुल्हे कि तरह सजाते है दूर से देखने पर ये बैल दुल्हे के लिये सजाइ गइ घोड़ी कि तरह दिखते है. घर कि महलाए बैलो का टिका-चन्दन करती है फ़िर घी के दिये से आरती उतारकर कृषक जीवन कि मन्गल कामना के लिये प्रार्थना करती है.
त्योहार के दुसरे दिन घरो मे काठ के नन्दी जो बाजारो से खरीद कर लाये जाते है उनकी पुजा घर मे स्थापना होती है ,पुरे घर मे उत्सव सा माहोल बना रहता है स्वादिष्ट पकवानो कि खुशबु से सारा घर भरा रहता है . पुरे घर परिवार के लोग पुजा घरो मे इकठ्ठा होते है पुरोहितो के द्वारा नन्दी का बड़े ही बिधि-बिधान से पुजन -अर्चन किया जाता है.
पुरूषो के लिये तो पोला बन्दिषो कि दिवार हि ढहा देता है इनको दो दिनो तक पिने-पिलाने कि पुरी छूट होती है. त्योहार जब अपने पुरे शबाब पर होता है तो शाम को एक जगह पर बैलो के मेले का आयोजन किया जाता है जहा बैलो के करतब करवाये जाते है.
लोक जीवन से जुड़ा बिदर्भ का यह त्योहार यहा के किसानो कि आत्मा मे बसता है बैलो के प्रति इनकी यह श्रद्धा एक बड़ा कारण हो सकता है कि यहा के किसान आज भी कृषि कार्य के लिये इनका उपयोग करते है.

Thursday, July 30, 2009

पथिक

अडिग मै शिला कि तरह
लहरो के थपेडो को सहने के लिये
प्यासो को , जल बन के बहने के लिये
मुझसे शान्त हो सके जो भूख किसी कि
तत्पर मै आहुति के लिये.
महिमामन्डित नही
बस पथिक
जिने कि राह पर जिने के लिये.

Monday, July 13, 2009

हिन्द-युग्म: अतीत का वहशीपन

हिन्द-युग्म: अतीत का वहशीपन

Sunday, July 5, 2009

सस्ती गजले

:१:
छ्प गये कितने बयान कागज पर
बन गये कितने मकान कागज पर
जिस्मो पर जख्म कुरेदने वाले
बन गये कितने महान कागज पर
अब मिलने मिलाने की फ़ुर्सत किसे
सिमट गये कितने जहान कागज पर

:२:
गम थी और खुशी थी
एक बूद जिन्दगी थी
हमने बाटी आधी आधी
एक टुक जिन्दगी थी
न जाने कितने किताब लिखे गये
वही हम वही जिन्दगी थी

Monday, June 29, 2009

दाये बाये जो दिखा

मुर्ति से नाही पारक से नाही, बदले तगदिरिया ना
माया दैद नोकरिया ना
कैसे बिताइ लम्बी उमरिया ,कठिन डगरिया ना
माया दैद नोकरिया ना
केउ न सुने हम दुखियन क बतिया
चाहता सब के नोटन क गठिरा
कैसे बिताइ केसे बताइ बडी कठिन डगरिया ना
माया दैद नोकरिया ना

Friday, June 26, 2009

लालगढ

भ्रष्ट लोकतान्त्रिक ब्यवस्था कि देन कह सकते है लालगढ को , हम कयी बार बराबर असफ़ल हुए फ़िर भी हमने कोइ सबक नही सिखा . जिस सिस्ट्म के दायरे मे हम है वो आज ब्रितानिया हुकुमत से कुछ कम नही. जुल्म और ज्यादती कि इन्तहा , फ़रियादी तो है पर कोइ सुनने वाला नही और जब हमे होश आता है तो मामला बहुत सन्गीन हो चुका रहता है .फ़िर शुरु होत है दौर कमेटियो को बनाने और रिपोर्टो को बनाने का . जहा - जहा भी बिद्रोह कि घटनाये हुइ है वहा मुल कारण मासूमो पर हुए पुलिस अत्याचार ही उभर कर आये है .ऐसी ही सिचुएशन का आतन्की और नक्स्ली इन्तेजार करते है जहा वे भावनात्मक रुप से उन्हे अपने साथ कर लेते है
लालगढ मे भी यही सब हुआ. बन्गाल मे सिन्गुर और नन्दीग्राम जैसी घटनाओ से बामपन्थियो ने कोइ सबक नही सिखा .
आज औद्योगिक करण के नाम पर किसानो और आदिवासियो को उनके जमीनो से बेदखल किया जा रहा है उनकी बहु-बेटियो को बेइज्ज्त भी किया जा रहा है तो उस दिशा मे उनका हिसक आन्दोलन कोइ आश्चर्य कि बात नही हमारे पुर्वजो ने भी तो ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ इन्ही ज्यादतियो के बिरुध्द सन्घर्ष किया. मजदुरो और किसानो के शोषण को मुद्दा बनाकर पिछले तीस सालो से बन्गाल मे बामपन्थियो ने सत्ता कि मलाइ को चाटा, आज वही किसान-मजदुर उनके एजेन्डे से बाहर है . खेतो का जबरिया अधिग्रहण किसानो को अन्दर तक झकझोरती है . आजादी के साठ सालो मे खेतो और किसानो के लिये क्या किया गया है ,पन्जाब, हरियाणा या आन्ध्रा ही पुरे देश के किसानो का प्रतिनिधित्व नही करते जबाब देना होगा कि पुर्वी उ.प्र. ,बन्गाल,उडिसा,बिहार जैसे पिछडे राज्यो के किसानो और आदिवाशियो के लिये क्या किया गया ,बिकास के लिये क्या इतने साल कम थे
फ़ौज के बुते हम भले ही लालगढ को कब्जा ले पर इस लालगढ फ़िर कयी सवाल खडे किये है जिसका जबाब तो ढुढना ही पडेगा.

Tuesday, June 16, 2009

गजल

:१:
आदमी
बच्चो के खेल का झुनझुना है आदमी
हर सियासी दाव का मोहरा बना है आदमी

जुल्म औ दहशत के छाव उम्र तु गुजार दे
युध्द मे तुझको लडना मना है आदमी

इन पत्थरो से भी चीख निकल सकती है
क्यु हाथ धर के बैठा सम्भावना है आदमी

:२:

टुकडो-टुकडो मे बटता मका कही मिलता
जमी कि धुल को आसमा नही मिलता

मेरी बात सुनो यार कभी फ़ुर्सत मे
चन्द लफ़्जो मे मुकम्मल बया नही मिलता

मीर गालिब कि जमी है ये मेरा हिन्दोस्ता
दाग कि शायरी का निशा यही मिलता

Saturday, June 13, 2009

स्वाइन ,खुशवन्त,बी.जे.पी.

स्वाइन फ़्लु-
जनाब खबरदार अभी आप एड्स ,बर्डफ़्लु से ही परेसान थे कि एक और बिमारी ने दरवाजे पर दस्तक दे दी है. युरोप और अमेरिका महद्विपो मे स्थिति बहुत खतरनाक हो गयी है मामले कि सवेदनशिलता को देखते हुए बिश्व स्वाथ्य सन्गठन ने इसे महामारी घोषित कर दिया है .वहा युध्द स्तर पर राहत और बचाव कि तैयारियो का खाका तैयार किया जा रहा है . भारत मे भी अपनी सरकार के सम्बन्धित मन्त्री गुलाम नबी आजाद ने प्रेस कान्फ़्रेन्स कर के इस सम्बन्ध मे अपना स्टैन्ड रखा . वैसे भारत के लिये स्थिति ज्यादा भयावह नही है .अपने यहा जो फ़्लु के १५ मामले प्रकाश मे आये है जिनकी स्थिति नाजुक नही है. हमे बचाव के तौर पर फ़्लु प्रभावित देशो से आने वाले लोगो पर ध्यान रखना होगा. मन्त्रालय ने भी सुरक्छा कि कडी मे एअर पोर्टो और आवश्यक स्थानो पर अधिक से अधिक जाच केन्द्रो कि स्थापना पर कार्य प्रारम्भ कर दिया है. आशा है कि जल्द ही इस महामारी को काबु मे कर लिया जयेगा.
खुशवन्त सिन्घ-
आपके दिमाग को किस किडे ने काट खाया है पता नही लग पा रहा है .आप अच्छे लेखक है किस बिचारधारा से प्रेरित है पता लगाना मुस्किल . आमो के बहुत शौकिन है इसका जिक्र अपने हर दुसरे लेख मे करते है. लेखो मे महिलाओ का जिक्र भी प्रचुरता के साथ.आप को सालिनता केवल कन्ग्रेसी नेताओ और उनके परिवारो मे दिखती है. उमा भारती और साध्वी प्रग्या मे आप कोइ फ़र्क महशुष नही करते .भगवाधारीयो से एलर्जी पर मदनी और बुखारी जैसो से सिम्पैथी . पकिस्तान से बिशेष अनुराग. सेकुलरवाद के घोर समर्थक.
भा.ज.पा. -
एक के बाद एक हारो से त्रस्त भा.ज.पा. मे अभी तक सन्कट के बादल हटते नजर नही आ रहे है .दुसरी पन्क्ति के नेताओ कि अति महत्वाकान्छा पार्टी कि नैया डुबाने को आतुर है .अपने मुल सिध्दान्तो कि बलि देकर और अति अनुशासनहीनता के कारण वोटरो मे दल की साख को बट्टा लगा है. भा.ज.पा. की अन्दरुनी राजनिति जसवन्त के ताजा बयानो से गर्म है ,साफ़ है कि वहा गुट्बाजी कि राज निति अभी तक हावी है.
चलते-चलते-
युवराज राहुल गान्धी के जन्मदिन को कोन्ग्रेस सदभावना दिवस के रुप मे मनाएगी.गणेश परिक्रमा चालु आहे.

Thursday, June 11, 2009

मिडिया मतलब.................

इलेक्ट्रानिक मिडिया दिग्भ्रमित हो चुका है, खोजी पत्रकारिता ने खाज पत्रकारिता का स्थान ले लिया है. खबर कि प्रासगिकता और सत्यता से ज्यादा उसका ब्रान्डिकरण अनिवार्य हो गया है. टी.आर.पी. के इस महाभारत मे हर कोइ आगे हि दिखना चाहता है "खबरे सबसे तेज के औसत नारे के साथ "
न्युज चैनलो के पास स्वस्थ समाचारो का अभाव है हर कोइ बाल कि खाल निकालने वाले समाचारो को परोसने मे ब्यस्त है.स्वात कि गलियो से निकलने वाली खबरे महिनो तक तेल- मसाले के साथ न चाहते हुए भी प्रोमो टाइम पर दिखलाइ जाती है. चुनाव कवरेज मे सभी न्युज समुहो ने निगेटिव न्युज कवर किया , चाहे वे उलटे-पुलटे राजनितिक बयान रहे हो या परिवर बिसेश का सकल राजनितिक प्रचार. मिडिया इस दरम्यान राजे-रजवाडो और अभिनेताओ के पिछे हि भागता रह गया. बाकी का जो समय बचा उसमे छोटे पर्दे पर प्रसारित धारावाहिको और पुजा-पाठ के बिधि बिधान कि खबरो मे हि ब्यतित कर दिया गया.खेत खलिहनो और रोजी रोजगार के सम्बन्ध मे सुचनाये बिते जमाने कि बात हो गयी अब रैम्प पर किन्ग का ट्विन्कल से बटन बन्द करवाना और रियलिटी शो मे सलमान का शर्ट उतारना ज्यादा बडी खबरे बना दी जाती है जिनका कोइ औचित्य नही बनता.
नव भारत के निर्माण मे मिडिया कि जो भुमिका सम्भावित थी वो न के बराबर है. अभिब्यक्ति कि स्वतन्त्रता का ये मतलब तो नही निकलता कि आप सुचना के साधनो का पुर्णतया बाजारीकरण कर देन्गे ,कुछ जिम्मेदारिया भी बनती है.आप उस देस से सम्बन्ध रखते है जहा मुलभुत ढाचे मे बहुत सारी सुधारो कि आवस्यकता है अफ़सोस कि हमारे न्युज चैनलो का ध्यान राजनितिक और क्रिकेटिय खबरो से हट नही पा रहा है.

Saturday, June 6, 2009

पर्यावरण दिवस और भारत

तेजी से बढ रहे ग्लोबल वार्मिन्ग के कारण ससार भर के लोग चिन्तित है, सभी इसके प्रभावो से निपटने का प्रयाश कर रहे है. भारत मे तेजी से बढ रहे प्राक्रितिक असन्तुलन चिन्ता का बिषय है. मानव सभ्यता के बिकाश के नाम पर हजारो वर्गकिलोमीटर जन्गलो को काट दिया गया है, जन्गलो मे तेजी के साथ बढती मानव गतिविधि ने जहा जन्गलो को बहुत नुकसान पहुचाया है वही वन्य जीवो के रहन-सहन को भी प्रभावित किया है. प्राक्रितिक असन्तुलन इस हद तक बढ गया है कि कही वर्षा का अभाव तो कही अत्यधिक वर्षा और भुस्खलन जैसी घटनाये बढी है, बन्यप्राणी पानी और छाव कि तलाश मे मानव बस्तियो कि ओर रुख कर रहे है.
तेजी के साथ ग्लेशियर घट रहे है, पुरे साल नदियो , तालाबो , और पोखरो मे जलाभाव रहता है, समुद्र का पानी बढ रहा है . ये सारी घटनाये मानव सभ्यता के लिये खतरे कि घन्टी है. फ़ारेस्ट सर्वे ओफ़ इन्डिया , २००३ के आकडे चौकाने वाले है .इस रिपोर्ट मे आकडे दर्शाते है कि २००३ मे ६७८३३३ वर्गकिलोमीटर बन भुमि भारत मे था जो २००५ आते-आते घटकर ६७७०८८ वर्गकिलोमीटर रह गया. इन दो वर्षो मे लगभग १२४५ वर्गकिलोमीटर बनो का सफ़ाया कर दिया गया, यह आकडा मात्र दो वर्षो का है हमने कितने हजार वर्गकिलोमीटर जन्गलो को नुकसान पहुचाया है इसका अन्दाजा लगा सकते है. पर्यावरणविदो का मत है कि भारत जैसे देश को प्रक्रिति रक्छा के लिये कम से कम ३० फ़िसदी बनाच्छादित भुमि कि आवश्यकता है किन्तु आकडो कि स्थिति बहुत दयनिय है, आज हमारे पास मात्र २० फ़िसदी भुभाग हि बनाच्छादित है प्राक्रितिक सन्तुलन के लिये यह गम्भिर स्थिति है.
आज बिश्व पर्यावरण दिवस है, मानव सभ्यता , प्राक्रितिक सन्तुलन एवम बन्यप्रणियो कि रक्छा के लिये देश के प्रत्येक नागरिक का यह परम कर्तब्य है कि बन-क्रान्ति के लिये ठोश पहल करे .

Monday, May 25, 2009

पानी रे पानी

"खसम मर जाये रामा गगरी ना फ़ुटे"......... इस लोकगीत कि पक्तिया बुन्देलखन्ड के अन्चलो मे आज भी गुजती रहती है. आधुनिक युग के नये सोपानो को लाघता भारत, सदियो से ब्याप्त कुछ समस्यावो का समाधान नही कर पाया है. पानी हमेशा ही हमारे देश के लिये अबुझ पहेली रहा है,चाहे वह पिने का पानी रहा हो या सिचाइ का. इस पानी ने हमारी आर्थिक और सामाजिक स्तर को हमेसा ही प्रभावित किया है.
पिछले साल आये भिषण कोसी के कहर से बिहार आज तक प्रभावित है जहा लोग आज भी उस दैविय आपदा के सदमे मे है.उडिसा जैसे राज्य कभी बिना पानी के और कभी अधिक पानी (बाड) से परेशान रहे है.इस पानी कि पिणा ने रचनाकारो के अभिब्यक्ति को भी प्रभावित किया है .
फ़िर भी हमने यह जानने का प्रयास नही किया कि हम प्रतिदिन कितना पानी नष्ट कर दिया करते है .तेजी के साथ भागती हमारी नगरिय सभ्यता रोज लाखो लिटर पानी का अपब्यय कर दिया जाता है एक अनुमान है कि दिल्ली और एन.सी.आर. के नालो से होकर जितना पानी यमुना मे बह जाता है मात्र उतने पानी से हजारो एकड खेतो को सिचा जा सकता है. जितना पानी मुम्बाइ के नालो से बहकर अरब सागर मे मिल जाता है उतना पानी अगर बिदर्भ के किसानो को मिल जाये तो शायद उन्हे आत्मह्त्या न करना पडे.किन्तु आत्मप्रशसा मे मुग्ध हमारी सरकारो ने इस समस्या को हल करने का प्रयाश नही किया, हा कुछ स्वयसेवी सस्थाए और आबिद सुरती जैसे कर्टुनिष्ट ब्यक्तिगत रुप से सक्रिय है.वर्षो से यमुना जैसी नदियो के सफ़ाइ के नाम पर अरबो रुपये का बन्दरबाट किया जाना जारी है पर उससे न तो यमुना का कल्याण हो पाया और न तो उसमे गिरने वाले गन्दे नालो के पानी का.
भारत के अधिकाश सहर नदियो के किनारे बसे है इन नदियो मे रोज हजारो लिटर गन्दा पानी बह जाता है, अगर नदियो मे गिरने वाले इस पानी को रिसाइकिल करके नहरो द्वारा खेतो तक पहुचाया जाये तो सिचाइ कि समस्या का हल किया जा सकता है और जो दुषित जल बह्कर नदियो के पानी को खराब करता है उससे हम छुटकारा पा सकते है फ़िर नदियो को साफ़ करने कि जरुरत सायद ही पडे. सारे जल स्रोतो का उपयोग भी किया जा सकता है.

Thursday, May 14, 2009

आगामी केन्द्रिय सरकार दलित नेता और इनकी भुमिका

वोटिन्ग का दौर समाप्त हो चुका है और अब केन्द्र मे सरकार बनाने के लिये भाजपा एवम कोन्ग्रेस नये सहयोगियो को टटोल रही है . कोइ भी दल या एलायन्स २०० की सख्या को लाघता नही दिख रहा है, ऐसी स्थिति मे एक - एक सान्सदो कि भुमिका महत्वपुर्ण हो जयेगी . परिणाम आने से पहले ही नये लोगो को पटाने कि कोशिशे तेज हो गइ है. मौजुदा तस्वीर साफ़ नही है पर दलो के स्वभाव और झुकाव से नयी स्थिति का आकलन किया जा सकता है. आने वाली केन्द्र कि सरकार चाहे जिसकी हो किन्तु गटःबन्दन का स्वरुप भविस्य कि राजनिति को आधार मे रखकर प्रारम्भ होगी , इसमे दलो के नफ़ा नुकसान कि गणितिय प्रक्रिया भी शामिल होगी. इस नये पोष्ट मे देश कि दलित पार्टियो और उनकी आगामी स्थितियो का अवलोकन करेन्गे .
मायावती , ब.स.पा. -
उत्तर भारत के दलित राजनिति कि मजबुत स्तम्भ और वर्तमान समय मे देश के सबसे बडे राज्य की मुख्यमन्त्री , आने वाली केन्द्रिय सरकार के बनने बिगणने मे इनकी भुमिका निर्णायक होगी . तिसरे मोर्चे के नेताओ की अतिमहत्वाकाऩ्चा मोर्चे मे बिखराव का कारण ,अपनी स्वय की प्रक्रिति के कारण मोर्चे मे रह पाना असम्भव . प्रधानमन्त्री बनने के लिये अभी और इन्तजार करना पण सकता है .
राम बिलास पासवान और राम दास आटवाले जैसे अन्य दलित नेताओ को नापसन्द करती है, इनकी सोशल इन्जियरिन्ग मे दरार पडनी सुरु हो गइ है . ताज कोरिडोर और आय से अधिक सम्पत्ति के मामलो मे राह्त को लेकर केन्द्र मे एन. डी.ए. का समर्थन कर सकती है . ये कभी नही चाहेन्गी कि समाजवादी पार्टी केन्द्र मे बनने वाली सरकार का हिस्सा हो, मुलायम - अमर का कोन्ग्रेस प्रेम इन्हे यु.पी.ए. से दुर हि रखेगा . आने वाले दिनो ब.स.पा. को टुट से बचाये रखना इनके लिये सबसे बडी चुनोती है.
राम बिलास पासवान ,लो.ज.पा. -
बिहार के दलितो मे अच्छी साख के बावजुद अखिल भारतिय छ्बि बनाने मे असफ़ल .देश के सर्वाधिक योग्य दलित नेता .सत्ता कि अति लोलुपता के कारण इन्हे आज जहा होना चाहिये वहा नही है.पुर्व मे एन.डी.ए. के बिस्वस्त सहयोगी. लुक एन्ड वेट कि स्ट्रेटजी पर वर्तमान राजनिति, सत्ता प्रेमी ,एन.डी.ए. या यु.पी.ए. या कोइ भी जो सत्ता के करीब पहुचता दिखाइ देगा, उसी को समर्थन देन्गे. आपके पास मुन्गेरी लाल के हशीन सपने है पर कुछ करने लायक नही .पार्टी मे सान्सदो कि अधिकतम सन्ख्या ४ तक पहुचने कि सम्भावना . केन्द्रिय राजनिति मे मायावती का बडता कद और बिहार मे मायावती को दलितो का मिल रहा ब्यापक समर्थन , भविष्य मे चिन्ता का बिषय है.इनके लिये सबसे बडी चुनोती केन्द्र मे अपनी पुरानी स्थिति बरकरार रखना.
राम दास आटवले , आर.पी.आइ. -
मौजुदा यु.पी.ए. सरकार के घटक , केन्द्र मे उतने ताकतवर नही पर सन्ख्या कि गणित मे महत्वपुर्ण, पिछले पान्च सालो से मन्त्री पद हेतु प्रयासरत . इस वर्ष मन्त्री पद पाना लगभग तय .सत्ता सुख के लिये किसी के साथ जा सकते है, किन्तु यु.पी.ए. के साथ रहने कि अधिक सम्भावना . अखिल भारतिय दलित राजनिति मे भुमिका नगण्य.
शेष भाग अगली पोस्ट मे ........

Monday, May 11, 2009

ब्लडी इन्डियन एन्ड .........

नेपाल के मौजुदा राजनैतिक परिवेश मे माओवादियो के हाथ मे ये तख्तिया आम बात हो गयी है, भारतियो से नफ़रत कि मओवादी राजनिति का निहितार्थ समझ मे नही आता . नेपाल मे राजसाही के खात्मे के बाद सर्वप्रथम भारत ने ही मावोवादीनीत नेपाली सरकार को सैधान्तिक समर्थन दिया.
आजादी के बाद से ही भारत ने दक्शिण एशिया मे अपने हितो कि अनदेखी करते हुये अपने पडोसियो के साथ बडे भाइ जैसा बर्ताव किया, भुटान के बाद नेपाल हि ऐसा देश है जहा हम वीजा नियमो का पालन नही करते , जीससे लाखो नेपालियो ने रोजी-रोजगार के लिये भारत मे सरण लिया हुआ है. हमने अपने नागरिको कि तरह शिक्छा और सेना जैसे महत्वपुर्ण बिभागो मे अन्गिकार किया, इतने पर भी मओवादियो का हमारे खिलाफ़ बिश-वमन समझ से परे है.
हमने नेपाल की सम्प्रभुता और अखन्डता हमेशा ही समर्थन किया और जब भी नेपाल को किसी प्रकार के सहयोग कि आवस्यकता पडी है हमने हर सम्भव मदद किया. चीनी साम्राज्यवादियो ने मओवादियो को इतन उलझा दिया है कि इनको हित और अहित का फ़र्क हि समझ मे नही आ रहा है.
नेपाल मे चीन का जरुरत से ज्यादा हस्तछेप भविस्य मे इनकी सम्प्रभुता पर सवाल खडा कर सकता है, हमारा एक शान्त पडोसी तिब्बत ड्रैगन की खुनी महत्वाकान्छा का शिकार हो चुका है, और यह उन नेपालियो के लिये भी गहरा आघात हो सकता है जिनके घरो मे चुल्हा दिल्ली कि क्रिपा से जलता है , ड्रैगन अपनी सामरिक जरुरतो के लिये नेपाली मावोवादियो क इस्तेमाल कर रही है. नेपाली अवाम को सचेत हो जाना चाहिये और "द ब्लडी डोग्स एन्ड चाइनिज आर नाट एलाउड इन नेपाल" के फ़ार्मुले पर अमल करे.
द ब्लडी इन्डियन एन्ड डोग्स आर नाट एलाउड इन नेपाल

Monday, February 23, 2009

अभीजात वाद चालू आहे ...........

तमाम लोग धोनी और शाहरूख जैसो की लाईफ़स्टाईल को देखकर
अपनी कीस्मत से रन्ज रखते होन्गे . अब जमाना सेलीब्रेटीयो का
हो गया है , हाथो-हाथ लीये जा रहे है हर फ़ील्ड मे. ईनका फ़्युचर अमेरीका
के भवीस्य की तरह सेफ़ है.

प्रजातन्त्र से अभीजात्तन्त्र पर पहुच जाते है पता ही नही चलता .
जनता का, जनता के द्वारा , जनता के लीये का मूल मन्त्र कब का
गूम हो गया है. एक चीज मेरी समझ मे नही आती की राजनीती मे ऐसी क्या
बात है जो हर कोइ सान्सद और बीधाय्क बनना चाहता है. एक उद्योग पती,
एक सीने स्टार , क्रीकेटर और देश की तमाम नामचीन हस्तीया क्या कमी है
ईनको सबकुछ तो है ईनके पास , पैसा नाम शोहरत, इनको आने वाली छीको
से अखबार के पन्ने भरे रहते है आखीर क्या चाहते है ये लोग राजनीती से.
ईन जैसो की राजनीती ने आम आदमी का कीतना भला कीया है, सीवाए
प्रजातन्त्र को अभीजाततन्त्र मे बदलने के.
हम, अभीजात का अभीजात के लीये अभीजात के द्वारा शासन का ईन्तेजार कर रहे है.
पडोगे लीखोगे तो होगे खराब
खेलोगे कूदोगे तो बनोगे नबाब

Saturday, February 21, 2009

आमन्त्रीत है....

भारत के नगरीको से आवेदन आमन्त्रीत है
पदनाम -सन्सद सदस्य (लोक सभा)
बेतनमान - असीमीत , हवाला, लुट और भ्र्स्टाचार युक्त पैसा,
बडे उद्योग पतीयो द्वारा प्राप्त कमीसन , एवम सासद
नीधी का एक बडा हीस्सा
उम्र - उम्र की कोइ सीमा नही , जीवन का अन्तीम बसन्त
देखने वाले भी आवेदन कर सकते है
योग्यता - कीसी जेल मे हत्या, बलत्कार ,लुट, आदी की सजा
प्राप्त कर चुके हो , या कीसी बडे माफ़ीया के रीलेटीव हो
या कीसी बडॆ राज घराने के राजकुमार हो या कीसी बडे नेता
के घर जन्म लीया हो, या देश की बडी सेलीब्रेटी हो, जैसे
क्रीकेटर ,फ़ील्म स्टार ,उद्योगपती आदी
आवेदन तीथी - कीसी भी पन्चवर्सीय मे आवेदन कर सकते है
परीणाम - परीणाम को लेकर फ़ीक्र न करे, अन्तोगत्वा
हमारी राजसाही प्रेरीत मीडीलक्लाश मानसीकता
ग्लैमराग्रस्त होकर आपको सन्सद मे हमारी भावनावो का
बलात्कार करने हेतू भेज देगी .

Monday, February 16, 2009

जय हो ....

1 सार्ट टर्म मेमोरी हैं न भाई ,सोचा न था अपने मुंबई वाले डिरेक्टोरो गाछा खा गए सब सयाने , वो उरोप वाला भू अपने झुग्गी की कहानियो को बेच आया डालरों में , और हमें छोड़ दिया हाथ मलने को केवल रहमान भाई की जय हो करने के वास्ते ।
स्लम ... झुग्गी कितना महत्वपूर्ण है इसकी गहराई हम भारतीयों कोअब तक पता नही थी। जय ...हो denny बएल की जिन्होंने हमें दिखलाया की देख भैये स्लम से डोलर कैसे बनाये जाते है ।
majak न मानियेगा भाई साहब स्लम का मतलब मै फ़िल्म देखेने के बाद ही समझ पाया अपने हिन्दी समाचार पत्रों के मध्यम से ."स्लम दोग मिलिनेर" में मेरे को अभी तक डॉग ... का मतलब समझाने में समस्या हो रही है । गरीबी कला जगत के लिए हमेसा से ही फायदे का ब्यापार रही है .प्रगतिसिलो ने भरी फायदा कमाया है , गरीबी बोले तो नेचुरेलिटी , गरीबी को मिटने से कोई समस्या हल नही होगी , गरीबी बेचोगे तो डॉलर मिलेगा , और डॉलर कुर्सी का आर्य सत्य है । dhanda है भाई करना पड़ता है .जीतनी ज्यादा पुब्लिसिटी उतना ज्यादा पैसा जीतनी ज्यादा गरीबी उतने ज्यादा नारे ,जितने ज्यादा नारे उतने ज्यादा वोट , सब.........धंदा है । ये कोर्पोरेट कुल्चर का जमाना है राहुल बाबा और डैनी बएल दोनों ने समझा ,एक वोट कम रहा है दूसरा डोलर ।

मेरे एक साथी है सिआइआइएल में भासा तकनीकी के pad पर कार्यरत है .कुछ दिन पहले उनसे मुलाकात हुई । मैंने उन्हें ओबामा के भारत प्रेम के बारे में बताया की वे राम भक्त हनुमान के बड़े भक्त है , उनकी जेब में हनुमान की एक मूर्ति रहती है , मेरे मित्र ने बतलाया की ये अमरीकी पोलितिस्क का ओबामा स्टंट था वह बसे भारत्वंसी बहुत महत्वपूर्ण है इसीलिए ओबामा ने ये पैतरेबाजी की । मेरे मित्र सायद सही थे , हनुमान जी ने अपना कम कर
दिया ।

आल इंडिया न्यूज़ के सायंकालीन समाचार सेवा में आपका स्वागत है ,हमारे बिसेस सवान्दाता ने सूचना दी है की प्रधानमंत्री के स्वस्थ में तेजी से सुधर हो रहा है , उन्हें रत को अच्छी नीद आई , सुबह उन्हें हल्का ब्यायाम करवाया गया ।

सभी तरफ़ मारामारी है
भारस्ताचार और बेकारी है
फ़िर भी जन गन मन की जय है
नेता अफसर जन की जय है

Monday, January 12, 2009

साबास राजा पीटर , सिर्फ़ एक सब्द आश्चर्यजनक , एक छोटी सी कोसिस , एक छोटी सी नसीहत और सायद लोकतंत्र के देवताओ को दिया गया आखिरी मौका। २६११ ने हमारे लोकतांत्रिक देवताओ पर से हमारे बिस्वास को दूर किया है और एक ऐसे धरातल की पृष्ठभूमि तैयार कराने में मदद की है जिसकी मुद्दत से जरुरत महसूस होती रही है .२६११ के बाद एक बयां पढ़ा " राजनेता हमें बाटने का प्रयास करते है जबकि आतंकी हमें एकजुट करते है" , बहुत अच्हा लगा।

इन नेताओ ने हमें आजादी के बाद से ही बार बार बाटने का प्रयास किया है , कभी भासा के नम पर तो कभी मन्दिर मस्जिद के नम पर अपने हितों को पोषित किया है जो हमें बताया गया हमने उस पर बिस्वास किया, कभीभी हमने यह जानने का प्रयास नही किया की वहा अन्दर क्या हो रहा है लेकिन अब नही ।

२०वि सदी के उत्तरार्ध और २१वि सदी के पूर्वार्ध में हमानेकई हमलो को बर्दास्त किया है देस के निति नियंताओ ने कभी भारतीयों से ये नही पूछाकी भाई आप क्या चाहते है ? हमेसा उन अमरीकियों से पूचना और सलाह लिया जाना मुनासिब समझा गया , जिन्होंने हमेसा हमारे साथ दोगला बरताव किया ।

हमें बार बार बिकास की नदिया बहने के दावे के साथ बरगलाया गया ,मन्दिर मस्जिद और जातिवादी राजनीति ने हमें भावनातमक रूप से ब्लाक्मैल किया ,देस का बिस्वास देस के सर्वोचा पदों पर बैठे लोगो से उठ गया है ,हमारेखोये बिस्वास को संबल देने वाला कोई ब्यक्ति नही है सिवा ख़ुद हमारे हम बहुत टूटे हुए है और हमारे अन्दर बहुत गुस्सा है , अपने लोकतान्त्रिक देवताओ के प्रति .......

................अबकी हमें कई रजा पितेरो को पैदा करना है ..... राजनीति के ढोंगी गुरुओ के लिए ।

:२:

माया तेरे सासन का कितना करू बखान

जनता जाए भादमें हमें बढ़नी सन ।

राहुल बाबा देस के होंगे पालनहार

"भूसा खूब उगाइए" सपोर्ट करे सरकार ।

अपने प्यारे मनमोहन वैरी कुएत कुल

अम्रीका ने बना दिया इनको फुल्ली फुल ।

पैर पड़ा है कब्र में सपने हुए जवान

एल। के। बाबु बनाना चाहे पि एम् हिंदुस्तान।

कबीरा अपने देस की भावः भावना नस्त

नेता अफसर ब्यापारी सबके सब है भ्रस्त ।