भ्रष्ट लोकतान्त्रिक ब्यवस्था कि देन कह सकते है लालगढ को , हम कयी बार बराबर असफ़ल हुए फ़िर भी हमने कोइ सबक नही सिखा . जिस सिस्ट्म के दायरे मे हम है वो आज ब्रितानिया हुकुमत से कुछ कम नही. जुल्म और ज्यादती कि इन्तहा , फ़रियादी तो है पर कोइ सुनने वाला नही और जब हमे होश आता है तो मामला बहुत सन्गीन हो चुका रहता है .फ़िर शुरु होत है दौर कमेटियो को बनाने और रिपोर्टो को बनाने का . जहा - जहा भी बिद्रोह कि घटनाये हुइ है वहा मुल कारण मासूमो पर हुए पुलिस अत्याचार ही उभर कर आये है .ऐसी ही सिचुएशन का आतन्की और नक्स्ली इन्तेजार करते है जहा वे भावनात्मक रुप से उन्हे अपने साथ कर लेते है
लालगढ मे भी यही सब हुआ. बन्गाल मे सिन्गुर और नन्दीग्राम जैसी घटनाओ से बामपन्थियो ने कोइ सबक नही सिखा .
आज औद्योगिक करण के नाम पर किसानो और आदिवासियो को उनके जमीनो से बेदखल किया जा रहा है उनकी बहु-बेटियो को बेइज्ज्त भी किया जा रहा है तो उस दिशा मे उनका हिसक आन्दोलन कोइ आश्चर्य कि बात नही हमारे पुर्वजो ने भी तो ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ इन्ही ज्यादतियो के बिरुध्द सन्घर्ष किया. मजदुरो और किसानो के शोषण को मुद्दा बनाकर पिछले तीस सालो से बन्गाल मे बामपन्थियो ने सत्ता कि मलाइ को चाटा, आज वही किसान-मजदुर उनके एजेन्डे से बाहर है . खेतो का जबरिया अधिग्रहण किसानो को अन्दर तक झकझोरती है . आजादी के साठ सालो मे खेतो और किसानो के लिये क्या किया गया है ,पन्जाब, हरियाणा या आन्ध्रा ही पुरे देश के किसानो का प्रतिनिधित्व नही करते जबाब देना होगा कि पुर्वी उ.प्र. ,बन्गाल,उडिसा,बिहार जैसे पिछडे राज्यो के किसानो और आदिवाशियो के लिये क्या किया गया ,बिकास के लिये क्या इतने साल कम थे
फ़ौज के बुते हम भले ही लालगढ को कब्जा ले पर इस लालगढ फ़िर कयी सवाल खडे किये है जिसका जबाब तो ढुढना ही पडेगा.
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