इलेक्ट्रानिक मिडिया दिग्भ्रमित हो चुका है, खोजी पत्रकारिता ने खाज पत्रकारिता का स्थान ले लिया है. खबर कि प्रासगिकता और सत्यता से ज्यादा उसका ब्रान्डिकरण अनिवार्य हो गया है. टी.आर.पी. के इस महाभारत मे हर कोइ आगे हि दिखना चाहता है "खबरे सबसे तेज के औसत नारे के साथ "
न्युज चैनलो के पास स्वस्थ समाचारो का अभाव है हर कोइ बाल कि खाल निकालने वाले समाचारो को परोसने मे ब्यस्त है.स्वात कि गलियो से निकलने वाली खबरे महिनो तक तेल- मसाले के साथ न चाहते हुए भी प्रोमो टाइम पर दिखलाइ जाती है. चुनाव कवरेज मे सभी न्युज समुहो ने निगेटिव न्युज कवर किया , चाहे वे उलटे-पुलटे राजनितिक बयान रहे हो या परिवर बिसेश का सकल राजनितिक प्रचार. मिडिया इस दरम्यान राजे-रजवाडो और अभिनेताओ के पिछे हि भागता रह गया. बाकी का जो समय बचा उसमे छोटे पर्दे पर प्रसारित धारावाहिको और पुजा-पाठ के बिधि बिधान कि खबरो मे हि ब्यतित कर दिया गया.खेत खलिहनो और रोजी रोजगार के सम्बन्ध मे सुचनाये बिते जमाने कि बात हो गयी अब रैम्प पर किन्ग का ट्विन्कल से बटन बन्द करवाना और रियलिटी शो मे सलमान का शर्ट उतारना ज्यादा बडी खबरे बना दी जाती है जिनका कोइ औचित्य नही बनता.
नव भारत के निर्माण मे मिडिया कि जो भुमिका सम्भावित थी वो न के बराबर है. अभिब्यक्ति कि स्वतन्त्रता का ये मतलब तो नही निकलता कि आप सुचना के साधनो का पुर्णतया बाजारीकरण कर देन्गे ,कुछ जिम्मेदारिया भी बनती है.आप उस देस से सम्बन्ध रखते है जहा मुलभुत ढाचे मे बहुत सारी सुधारो कि आवस्यकता है अफ़सोस कि हमारे न्युज चैनलो का ध्यान राजनितिक और क्रिकेटिय खबरो से हट नही पा रहा है.
Thursday, June 11, 2009
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