:१:
आदमी
बच्चो के खेल का झुनझुना है आदमी
हर सियासी दाव का मोहरा बना है आदमी
जुल्म औ दहशत के छाव उम्र तु गुजार दे
युध्द मे तुझको लडना मना है आदमी
इन पत्थरो से भी चीख निकल सकती है
क्यु हाथ धर के बैठा सम्भावना है आदमी
:२:
टुकडो-टुकडो मे बटता मका कही मिलता
जमी कि धुल को आसमा नही मिलता
मेरी बात सुनो यार कभी फ़ुर्सत मे
चन्द लफ़्जो मे मुकम्मल बया नही मिलता
मीर गालिब कि जमी है ये मेरा हिन्दोस्ता
दाग कि शायरी का निशा यही मिलता
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3 comments:
aadmi par bahut kuchh kaha gaya ....lekin yah ghazal anoothi hai
badhaai !
आपका स्वागत है तरही मुशायरे में भाग लेने के लिए सुबीर जी के ब्लॉग सुबीर संवाद सेवा पर
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मिर्जापुर के हो भाई कभी इलाहाबाद आना तो मुलाकात करना
अपना संचिप्त परिचय देने की कृपा करिए
venuskesari@gmail.com
वीनस केसरी (मुट्ठीगंज, इलाहाबाद)
मिर्जापुर के हो भाई कभी इलाहाबाद आना तो मुलाकात करना
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