Saturday, June 6, 2009

पर्यावरण दिवस और भारत

तेजी से बढ रहे ग्लोबल वार्मिन्ग के कारण ससार भर के लोग चिन्तित है, सभी इसके प्रभावो से निपटने का प्रयाश कर रहे है. भारत मे तेजी से बढ रहे प्राक्रितिक असन्तुलन चिन्ता का बिषय है. मानव सभ्यता के बिकाश के नाम पर हजारो वर्गकिलोमीटर जन्गलो को काट दिया गया है, जन्गलो मे तेजी के साथ बढती मानव गतिविधि ने जहा जन्गलो को बहुत नुकसान पहुचाया है वही वन्य जीवो के रहन-सहन को भी प्रभावित किया है. प्राक्रितिक असन्तुलन इस हद तक बढ गया है कि कही वर्षा का अभाव तो कही अत्यधिक वर्षा और भुस्खलन जैसी घटनाये बढी है, बन्यप्राणी पानी और छाव कि तलाश मे मानव बस्तियो कि ओर रुख कर रहे है.
तेजी के साथ ग्लेशियर घट रहे है, पुरे साल नदियो , तालाबो , और पोखरो मे जलाभाव रहता है, समुद्र का पानी बढ रहा है . ये सारी घटनाये मानव सभ्यता के लिये खतरे कि घन्टी है. फ़ारेस्ट सर्वे ओफ़ इन्डिया , २००३ के आकडे चौकाने वाले है .इस रिपोर्ट मे आकडे दर्शाते है कि २००३ मे ६७८३३३ वर्गकिलोमीटर बन भुमि भारत मे था जो २००५ आते-आते घटकर ६७७०८८ वर्गकिलोमीटर रह गया. इन दो वर्षो मे लगभग १२४५ वर्गकिलोमीटर बनो का सफ़ाया कर दिया गया, यह आकडा मात्र दो वर्षो का है हमने कितने हजार वर्गकिलोमीटर जन्गलो को नुकसान पहुचाया है इसका अन्दाजा लगा सकते है. पर्यावरणविदो का मत है कि भारत जैसे देश को प्रक्रिति रक्छा के लिये कम से कम ३० फ़िसदी बनाच्छादित भुमि कि आवश्यकता है किन्तु आकडो कि स्थिति बहुत दयनिय है, आज हमारे पास मात्र २० फ़िसदी भुभाग हि बनाच्छादित है प्राक्रितिक सन्तुलन के लिये यह गम्भिर स्थिति है.
आज बिश्व पर्यावरण दिवस है, मानव सभ्यता , प्राक्रितिक सन्तुलन एवम बन्यप्रणियो कि रक्छा के लिये देश के प्रत्येक नागरिक का यह परम कर्तब्य है कि बन-क्रान्ति के लिये ठोश पहल करे .

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