Monday, May 25, 2009

पानी रे पानी

"खसम मर जाये रामा गगरी ना फ़ुटे"......... इस लोकगीत कि पक्तिया बुन्देलखन्ड के अन्चलो मे आज भी गुजती रहती है. आधुनिक युग के नये सोपानो को लाघता भारत, सदियो से ब्याप्त कुछ समस्यावो का समाधान नही कर पाया है. पानी हमेशा ही हमारे देश के लिये अबुझ पहेली रहा है,चाहे वह पिने का पानी रहा हो या सिचाइ का. इस पानी ने हमारी आर्थिक और सामाजिक स्तर को हमेसा ही प्रभावित किया है.
पिछले साल आये भिषण कोसी के कहर से बिहार आज तक प्रभावित है जहा लोग आज भी उस दैविय आपदा के सदमे मे है.उडिसा जैसे राज्य कभी बिना पानी के और कभी अधिक पानी (बाड) से परेशान रहे है.इस पानी कि पिणा ने रचनाकारो के अभिब्यक्ति को भी प्रभावित किया है .
फ़िर भी हमने यह जानने का प्रयास नही किया कि हम प्रतिदिन कितना पानी नष्ट कर दिया करते है .तेजी के साथ भागती हमारी नगरिय सभ्यता रोज लाखो लिटर पानी का अपब्यय कर दिया जाता है एक अनुमान है कि दिल्ली और एन.सी.आर. के नालो से होकर जितना पानी यमुना मे बह जाता है मात्र उतने पानी से हजारो एकड खेतो को सिचा जा सकता है. जितना पानी मुम्बाइ के नालो से बहकर अरब सागर मे मिल जाता है उतना पानी अगर बिदर्भ के किसानो को मिल जाये तो शायद उन्हे आत्मह्त्या न करना पडे.किन्तु आत्मप्रशसा मे मुग्ध हमारी सरकारो ने इस समस्या को हल करने का प्रयाश नही किया, हा कुछ स्वयसेवी सस्थाए और आबिद सुरती जैसे कर्टुनिष्ट ब्यक्तिगत रुप से सक्रिय है.वर्षो से यमुना जैसी नदियो के सफ़ाइ के नाम पर अरबो रुपये का बन्दरबाट किया जाना जारी है पर उससे न तो यमुना का कल्याण हो पाया और न तो उसमे गिरने वाले गन्दे नालो के पानी का.
भारत के अधिकाश सहर नदियो के किनारे बसे है इन नदियो मे रोज हजारो लिटर गन्दा पानी बह जाता है, अगर नदियो मे गिरने वाले इस पानी को रिसाइकिल करके नहरो द्वारा खेतो तक पहुचाया जाये तो सिचाइ कि समस्या का हल किया जा सकता है और जो दुषित जल बह्कर नदियो के पानी को खराब करता है उससे हम छुटकारा पा सकते है फ़िर नदियो को साफ़ करने कि जरुरत सायद ही पडे. सारे जल स्रोतो का उपयोग भी किया जा सकता है.

Thursday, May 14, 2009

आगामी केन्द्रिय सरकार दलित नेता और इनकी भुमिका

वोटिन्ग का दौर समाप्त हो चुका है और अब केन्द्र मे सरकार बनाने के लिये भाजपा एवम कोन्ग्रेस नये सहयोगियो को टटोल रही है . कोइ भी दल या एलायन्स २०० की सख्या को लाघता नही दिख रहा है, ऐसी स्थिति मे एक - एक सान्सदो कि भुमिका महत्वपुर्ण हो जयेगी . परिणाम आने से पहले ही नये लोगो को पटाने कि कोशिशे तेज हो गइ है. मौजुदा तस्वीर साफ़ नही है पर दलो के स्वभाव और झुकाव से नयी स्थिति का आकलन किया जा सकता है. आने वाली केन्द्र कि सरकार चाहे जिसकी हो किन्तु गटःबन्दन का स्वरुप भविस्य कि राजनिति को आधार मे रखकर प्रारम्भ होगी , इसमे दलो के नफ़ा नुकसान कि गणितिय प्रक्रिया भी शामिल होगी. इस नये पोष्ट मे देश कि दलित पार्टियो और उनकी आगामी स्थितियो का अवलोकन करेन्गे .
मायावती , ब.स.पा. -
उत्तर भारत के दलित राजनिति कि मजबुत स्तम्भ और वर्तमान समय मे देश के सबसे बडे राज्य की मुख्यमन्त्री , आने वाली केन्द्रिय सरकार के बनने बिगणने मे इनकी भुमिका निर्णायक होगी . तिसरे मोर्चे के नेताओ की अतिमहत्वाकाऩ्चा मोर्चे मे बिखराव का कारण ,अपनी स्वय की प्रक्रिति के कारण मोर्चे मे रह पाना असम्भव . प्रधानमन्त्री बनने के लिये अभी और इन्तजार करना पण सकता है .
राम बिलास पासवान और राम दास आटवाले जैसे अन्य दलित नेताओ को नापसन्द करती है, इनकी सोशल इन्जियरिन्ग मे दरार पडनी सुरु हो गइ है . ताज कोरिडोर और आय से अधिक सम्पत्ति के मामलो मे राह्त को लेकर केन्द्र मे एन. डी.ए. का समर्थन कर सकती है . ये कभी नही चाहेन्गी कि समाजवादी पार्टी केन्द्र मे बनने वाली सरकार का हिस्सा हो, मुलायम - अमर का कोन्ग्रेस प्रेम इन्हे यु.पी.ए. से दुर हि रखेगा . आने वाले दिनो ब.स.पा. को टुट से बचाये रखना इनके लिये सबसे बडी चुनोती है.
राम बिलास पासवान ,लो.ज.पा. -
बिहार के दलितो मे अच्छी साख के बावजुद अखिल भारतिय छ्बि बनाने मे असफ़ल .देश के सर्वाधिक योग्य दलित नेता .सत्ता कि अति लोलुपता के कारण इन्हे आज जहा होना चाहिये वहा नही है.पुर्व मे एन.डी.ए. के बिस्वस्त सहयोगी. लुक एन्ड वेट कि स्ट्रेटजी पर वर्तमान राजनिति, सत्ता प्रेमी ,एन.डी.ए. या यु.पी.ए. या कोइ भी जो सत्ता के करीब पहुचता दिखाइ देगा, उसी को समर्थन देन्गे. आपके पास मुन्गेरी लाल के हशीन सपने है पर कुछ करने लायक नही .पार्टी मे सान्सदो कि अधिकतम सन्ख्या ४ तक पहुचने कि सम्भावना . केन्द्रिय राजनिति मे मायावती का बडता कद और बिहार मे मायावती को दलितो का मिल रहा ब्यापक समर्थन , भविष्य मे चिन्ता का बिषय है.इनके लिये सबसे बडी चुनोती केन्द्र मे अपनी पुरानी स्थिति बरकरार रखना.
राम दास आटवले , आर.पी.आइ. -
मौजुदा यु.पी.ए. सरकार के घटक , केन्द्र मे उतने ताकतवर नही पर सन्ख्या कि गणित मे महत्वपुर्ण, पिछले पान्च सालो से मन्त्री पद हेतु प्रयासरत . इस वर्ष मन्त्री पद पाना लगभग तय .सत्ता सुख के लिये किसी के साथ जा सकते है, किन्तु यु.पी.ए. के साथ रहने कि अधिक सम्भावना . अखिल भारतिय दलित राजनिति मे भुमिका नगण्य.
शेष भाग अगली पोस्ट मे ........

Monday, May 11, 2009

ब्लडी इन्डियन एन्ड .........

नेपाल के मौजुदा राजनैतिक परिवेश मे माओवादियो के हाथ मे ये तख्तिया आम बात हो गयी है, भारतियो से नफ़रत कि मओवादी राजनिति का निहितार्थ समझ मे नही आता . नेपाल मे राजसाही के खात्मे के बाद सर्वप्रथम भारत ने ही मावोवादीनीत नेपाली सरकार को सैधान्तिक समर्थन दिया.
आजादी के बाद से ही भारत ने दक्शिण एशिया मे अपने हितो कि अनदेखी करते हुये अपने पडोसियो के साथ बडे भाइ जैसा बर्ताव किया, भुटान के बाद नेपाल हि ऐसा देश है जहा हम वीजा नियमो का पालन नही करते , जीससे लाखो नेपालियो ने रोजी-रोजगार के लिये भारत मे सरण लिया हुआ है. हमने अपने नागरिको कि तरह शिक्छा और सेना जैसे महत्वपुर्ण बिभागो मे अन्गिकार किया, इतने पर भी मओवादियो का हमारे खिलाफ़ बिश-वमन समझ से परे है.
हमने नेपाल की सम्प्रभुता और अखन्डता हमेशा ही समर्थन किया और जब भी नेपाल को किसी प्रकार के सहयोग कि आवस्यकता पडी है हमने हर सम्भव मदद किया. चीनी साम्राज्यवादियो ने मओवादियो को इतन उलझा दिया है कि इनको हित और अहित का फ़र्क हि समझ मे नही आ रहा है.
नेपाल मे चीन का जरुरत से ज्यादा हस्तछेप भविस्य मे इनकी सम्प्रभुता पर सवाल खडा कर सकता है, हमारा एक शान्त पडोसी तिब्बत ड्रैगन की खुनी महत्वाकान्छा का शिकार हो चुका है, और यह उन नेपालियो के लिये भी गहरा आघात हो सकता है जिनके घरो मे चुल्हा दिल्ली कि क्रिपा से जलता है , ड्रैगन अपनी सामरिक जरुरतो के लिये नेपाली मावोवादियो क इस्तेमाल कर रही है. नेपाली अवाम को सचेत हो जाना चाहिये और "द ब्लडी डोग्स एन्ड चाइनिज आर नाट एलाउड इन नेपाल" के फ़ार्मुले पर अमल करे.
द ब्लडी इन्डियन एन्ड डोग्स आर नाट एलाउड इन नेपाल