Monday, June 29, 2009

दाये बाये जो दिखा

मुर्ति से नाही पारक से नाही, बदले तगदिरिया ना
माया दैद नोकरिया ना
कैसे बिताइ लम्बी उमरिया ,कठिन डगरिया ना
माया दैद नोकरिया ना
केउ न सुने हम दुखियन क बतिया
चाहता सब के नोटन क गठिरा
कैसे बिताइ केसे बताइ बडी कठिन डगरिया ना
माया दैद नोकरिया ना

Friday, June 26, 2009

लालगढ

भ्रष्ट लोकतान्त्रिक ब्यवस्था कि देन कह सकते है लालगढ को , हम कयी बार बराबर असफ़ल हुए फ़िर भी हमने कोइ सबक नही सिखा . जिस सिस्ट्म के दायरे मे हम है वो आज ब्रितानिया हुकुमत से कुछ कम नही. जुल्म और ज्यादती कि इन्तहा , फ़रियादी तो है पर कोइ सुनने वाला नही और जब हमे होश आता है तो मामला बहुत सन्गीन हो चुका रहता है .फ़िर शुरु होत है दौर कमेटियो को बनाने और रिपोर्टो को बनाने का . जहा - जहा भी बिद्रोह कि घटनाये हुइ है वहा मुल कारण मासूमो पर हुए पुलिस अत्याचार ही उभर कर आये है .ऐसी ही सिचुएशन का आतन्की और नक्स्ली इन्तेजार करते है जहा वे भावनात्मक रुप से उन्हे अपने साथ कर लेते है
लालगढ मे भी यही सब हुआ. बन्गाल मे सिन्गुर और नन्दीग्राम जैसी घटनाओ से बामपन्थियो ने कोइ सबक नही सिखा .
आज औद्योगिक करण के नाम पर किसानो और आदिवासियो को उनके जमीनो से बेदखल किया जा रहा है उनकी बहु-बेटियो को बेइज्ज्त भी किया जा रहा है तो उस दिशा मे उनका हिसक आन्दोलन कोइ आश्चर्य कि बात नही हमारे पुर्वजो ने भी तो ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ इन्ही ज्यादतियो के बिरुध्द सन्घर्ष किया. मजदुरो और किसानो के शोषण को मुद्दा बनाकर पिछले तीस सालो से बन्गाल मे बामपन्थियो ने सत्ता कि मलाइ को चाटा, आज वही किसान-मजदुर उनके एजेन्डे से बाहर है . खेतो का जबरिया अधिग्रहण किसानो को अन्दर तक झकझोरती है . आजादी के साठ सालो मे खेतो और किसानो के लिये क्या किया गया है ,पन्जाब, हरियाणा या आन्ध्रा ही पुरे देश के किसानो का प्रतिनिधित्व नही करते जबाब देना होगा कि पुर्वी उ.प्र. ,बन्गाल,उडिसा,बिहार जैसे पिछडे राज्यो के किसानो और आदिवाशियो के लिये क्या किया गया ,बिकास के लिये क्या इतने साल कम थे
फ़ौज के बुते हम भले ही लालगढ को कब्जा ले पर इस लालगढ फ़िर कयी सवाल खडे किये है जिसका जबाब तो ढुढना ही पडेगा.

Tuesday, June 16, 2009

गजल

:१:
आदमी
बच्चो के खेल का झुनझुना है आदमी
हर सियासी दाव का मोहरा बना है आदमी

जुल्म औ दहशत के छाव उम्र तु गुजार दे
युध्द मे तुझको लडना मना है आदमी

इन पत्थरो से भी चीख निकल सकती है
क्यु हाथ धर के बैठा सम्भावना है आदमी

:२:

टुकडो-टुकडो मे बटता मका कही मिलता
जमी कि धुल को आसमा नही मिलता

मेरी बात सुनो यार कभी फ़ुर्सत मे
चन्द लफ़्जो मे मुकम्मल बया नही मिलता

मीर गालिब कि जमी है ये मेरा हिन्दोस्ता
दाग कि शायरी का निशा यही मिलता

Saturday, June 13, 2009

स्वाइन ,खुशवन्त,बी.जे.पी.

स्वाइन फ़्लु-
जनाब खबरदार अभी आप एड्स ,बर्डफ़्लु से ही परेसान थे कि एक और बिमारी ने दरवाजे पर दस्तक दे दी है. युरोप और अमेरिका महद्विपो मे स्थिति बहुत खतरनाक हो गयी है मामले कि सवेदनशिलता को देखते हुए बिश्व स्वाथ्य सन्गठन ने इसे महामारी घोषित कर दिया है .वहा युध्द स्तर पर राहत और बचाव कि तैयारियो का खाका तैयार किया जा रहा है . भारत मे भी अपनी सरकार के सम्बन्धित मन्त्री गुलाम नबी आजाद ने प्रेस कान्फ़्रेन्स कर के इस सम्बन्ध मे अपना स्टैन्ड रखा . वैसे भारत के लिये स्थिति ज्यादा भयावह नही है .अपने यहा जो फ़्लु के १५ मामले प्रकाश मे आये है जिनकी स्थिति नाजुक नही है. हमे बचाव के तौर पर फ़्लु प्रभावित देशो से आने वाले लोगो पर ध्यान रखना होगा. मन्त्रालय ने भी सुरक्छा कि कडी मे एअर पोर्टो और आवश्यक स्थानो पर अधिक से अधिक जाच केन्द्रो कि स्थापना पर कार्य प्रारम्भ कर दिया है. आशा है कि जल्द ही इस महामारी को काबु मे कर लिया जयेगा.
खुशवन्त सिन्घ-
आपके दिमाग को किस किडे ने काट खाया है पता नही लग पा रहा है .आप अच्छे लेखक है किस बिचारधारा से प्रेरित है पता लगाना मुस्किल . आमो के बहुत शौकिन है इसका जिक्र अपने हर दुसरे लेख मे करते है. लेखो मे महिलाओ का जिक्र भी प्रचुरता के साथ.आप को सालिनता केवल कन्ग्रेसी नेताओ और उनके परिवारो मे दिखती है. उमा भारती और साध्वी प्रग्या मे आप कोइ फ़र्क महशुष नही करते .भगवाधारीयो से एलर्जी पर मदनी और बुखारी जैसो से सिम्पैथी . पकिस्तान से बिशेष अनुराग. सेकुलरवाद के घोर समर्थक.
भा.ज.पा. -
एक के बाद एक हारो से त्रस्त भा.ज.पा. मे अभी तक सन्कट के बादल हटते नजर नही आ रहे है .दुसरी पन्क्ति के नेताओ कि अति महत्वाकान्छा पार्टी कि नैया डुबाने को आतुर है .अपने मुल सिध्दान्तो कि बलि देकर और अति अनुशासनहीनता के कारण वोटरो मे दल की साख को बट्टा लगा है. भा.ज.पा. की अन्दरुनी राजनिति जसवन्त के ताजा बयानो से गर्म है ,साफ़ है कि वहा गुट्बाजी कि राज निति अभी तक हावी है.
चलते-चलते-
युवराज राहुल गान्धी के जन्मदिन को कोन्ग्रेस सदभावना दिवस के रुप मे मनाएगी.गणेश परिक्रमा चालु आहे.

Thursday, June 11, 2009

मिडिया मतलब.................

इलेक्ट्रानिक मिडिया दिग्भ्रमित हो चुका है, खोजी पत्रकारिता ने खाज पत्रकारिता का स्थान ले लिया है. खबर कि प्रासगिकता और सत्यता से ज्यादा उसका ब्रान्डिकरण अनिवार्य हो गया है. टी.आर.पी. के इस महाभारत मे हर कोइ आगे हि दिखना चाहता है "खबरे सबसे तेज के औसत नारे के साथ "
न्युज चैनलो के पास स्वस्थ समाचारो का अभाव है हर कोइ बाल कि खाल निकालने वाले समाचारो को परोसने मे ब्यस्त है.स्वात कि गलियो से निकलने वाली खबरे महिनो तक तेल- मसाले के साथ न चाहते हुए भी प्रोमो टाइम पर दिखलाइ जाती है. चुनाव कवरेज मे सभी न्युज समुहो ने निगेटिव न्युज कवर किया , चाहे वे उलटे-पुलटे राजनितिक बयान रहे हो या परिवर बिसेश का सकल राजनितिक प्रचार. मिडिया इस दरम्यान राजे-रजवाडो और अभिनेताओ के पिछे हि भागता रह गया. बाकी का जो समय बचा उसमे छोटे पर्दे पर प्रसारित धारावाहिको और पुजा-पाठ के बिधि बिधान कि खबरो मे हि ब्यतित कर दिया गया.खेत खलिहनो और रोजी रोजगार के सम्बन्ध मे सुचनाये बिते जमाने कि बात हो गयी अब रैम्प पर किन्ग का ट्विन्कल से बटन बन्द करवाना और रियलिटी शो मे सलमान का शर्ट उतारना ज्यादा बडी खबरे बना दी जाती है जिनका कोइ औचित्य नही बनता.
नव भारत के निर्माण मे मिडिया कि जो भुमिका सम्भावित थी वो न के बराबर है. अभिब्यक्ति कि स्वतन्त्रता का ये मतलब तो नही निकलता कि आप सुचना के साधनो का पुर्णतया बाजारीकरण कर देन्गे ,कुछ जिम्मेदारिया भी बनती है.आप उस देस से सम्बन्ध रखते है जहा मुलभुत ढाचे मे बहुत सारी सुधारो कि आवस्यकता है अफ़सोस कि हमारे न्युज चैनलो का ध्यान राजनितिक और क्रिकेटिय खबरो से हट नही पा रहा है.

Saturday, June 6, 2009

पर्यावरण दिवस और भारत

तेजी से बढ रहे ग्लोबल वार्मिन्ग के कारण ससार भर के लोग चिन्तित है, सभी इसके प्रभावो से निपटने का प्रयाश कर रहे है. भारत मे तेजी से बढ रहे प्राक्रितिक असन्तुलन चिन्ता का बिषय है. मानव सभ्यता के बिकाश के नाम पर हजारो वर्गकिलोमीटर जन्गलो को काट दिया गया है, जन्गलो मे तेजी के साथ बढती मानव गतिविधि ने जहा जन्गलो को बहुत नुकसान पहुचाया है वही वन्य जीवो के रहन-सहन को भी प्रभावित किया है. प्राक्रितिक असन्तुलन इस हद तक बढ गया है कि कही वर्षा का अभाव तो कही अत्यधिक वर्षा और भुस्खलन जैसी घटनाये बढी है, बन्यप्राणी पानी और छाव कि तलाश मे मानव बस्तियो कि ओर रुख कर रहे है.
तेजी के साथ ग्लेशियर घट रहे है, पुरे साल नदियो , तालाबो , और पोखरो मे जलाभाव रहता है, समुद्र का पानी बढ रहा है . ये सारी घटनाये मानव सभ्यता के लिये खतरे कि घन्टी है. फ़ारेस्ट सर्वे ओफ़ इन्डिया , २००३ के आकडे चौकाने वाले है .इस रिपोर्ट मे आकडे दर्शाते है कि २००३ मे ६७८३३३ वर्गकिलोमीटर बन भुमि भारत मे था जो २००५ आते-आते घटकर ६७७०८८ वर्गकिलोमीटर रह गया. इन दो वर्षो मे लगभग १२४५ वर्गकिलोमीटर बनो का सफ़ाया कर दिया गया, यह आकडा मात्र दो वर्षो का है हमने कितने हजार वर्गकिलोमीटर जन्गलो को नुकसान पहुचाया है इसका अन्दाजा लगा सकते है. पर्यावरणविदो का मत है कि भारत जैसे देश को प्रक्रिति रक्छा के लिये कम से कम ३० फ़िसदी बनाच्छादित भुमि कि आवश्यकता है किन्तु आकडो कि स्थिति बहुत दयनिय है, आज हमारे पास मात्र २० फ़िसदी भुभाग हि बनाच्छादित है प्राक्रितिक सन्तुलन के लिये यह गम्भिर स्थिति है.
आज बिश्व पर्यावरण दिवस है, मानव सभ्यता , प्राक्रितिक सन्तुलन एवम बन्यप्रणियो कि रक्छा के लिये देश के प्रत्येक नागरिक का यह परम कर्तब्य है कि बन-क्रान्ति के लिये ठोश पहल करे .