नागपन्चमी से भारत मे त्योहारो कि शुरूवात होने लगती है , भारत जिसके बारे मे कहा जाता है कि ३०० किलोमीटर पर यहा पानी - बानी (भाषा) मे अन्तर दिखाइ देता है यह अन्तर वहा के जनजीवन कि लोक सस्कृतिय अवस्थाओ मे भी देखा जा सकता है खासकर वहा मनाए जाने वाले त्योहारो मे. लोक जीवन और लोक सस्कृति से सम्भन्धित ऐसा ही एक त्योहार "पोला"बिदर्भ के अन्चलो मे बड़े ही जोरदार तरिके से मनाया जाता है. "पोला" कृषि जीवन से प्रेरित त्योहार है. भारत एक कृषि प्रधान देश है और एक किसान के लिये पशु (बैल) धन उसकी सबसे बड़ी पुजी होती है.पशुओ (बैलो) के माध्यम से ही किसान धरती का सिना चिरकर अनाज का उत्पादन करता है, भावनात्मक स्तर पर बैल किसान के लिये कितने महत्वपुर्ण होते है इसकी ब्याखा प्रेमचन्द ने गोदान मे कि है खैर ये सब चर्चाए बाद के लिये हा तो पोला ऐसा त्योहार है जिसका किसान साल भर बड़ी बेसब्री से इन्तजार करते है.अमीर- गरीब सभी बड़े चाव और मस्ती से भादव महिने मे इस त्योहार को दो दिनो तक मनाते है. इस दिन किसान अपने बैलो को दुल्हे कि तरह सजाते है दूर से देखने पर ये बैल दुल्हे के लिये सजाइ गइ घोड़ी कि तरह दिखते है. घर कि महलाए बैलो का टिका-चन्दन करती है फ़िर घी के दिये से आरती उतारकर कृषक जीवन कि मन्गल कामना के लिये प्रार्थना करती है.
त्योहार के दुसरे दिन घरो मे काठ के नन्दी जो बाजारो से खरीद कर लाये जाते है उनकी पुजा घर मे स्थापना होती है ,पुरे घर मे उत्सव सा माहोल बना रहता है स्वादिष्ट पकवानो कि खुशबु से सारा घर भरा रहता है . पुरे घर परिवार के लोग पुजा घरो मे इकठ्ठा होते है पुरोहितो के द्वारा नन्दी का बड़े ही बिधि-बिधान से पुजन -अर्चन किया जाता है.
पुरूषो के लिये तो पोला बन्दिषो कि दिवार हि ढहा देता है इनको दो दिनो तक पिने-पिलाने कि पुरी छूट होती है. त्योहार जब अपने पुरे शबाब पर होता है तो शाम को एक जगह पर बैलो के मेले का आयोजन किया जाता है जहा बैलो के करतब करवाये जाते है.
लोक जीवन से जुड़ा बिदर्भ का यह त्योहार यहा के किसानो कि आत्मा मे बसता है बैलो के प्रति इनकी यह श्रद्धा एक बड़ा कारण हो सकता है कि यहा के किसान आज भी कृषि कार्य के लिये इनका उपयोग करते है.
Friday, August 21, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment