Monday, August 11, 2008
क्रांति 2008
बॉलीवुड तो जैसे सेक्स क्रांति की अंधी दौड़ में सब खुच भूल चुका हुआ है। क्या नेता ,क्या जनता सब के सब इस हमाम में नंगे हो गए है .अब भाई अपनी मल्लिका को ही ले ले ... उनकी पहचान क्या है? एक्स्पोसेर गर्ल सायद ये सब्द गधे है हमारे भारत माफ़ करे इंडिया के नवनियुक्त आभिजात्य और नारीवादी बिचाराको ने .बड़ी दुभिदा की इस्तिथि तब हो जाती है जब आप इसका समर्थन करते है तो कोइआप को पशिमी संस्कृति का पक्ष्दर कहता है और जब आप बिरोध करते है तो तो आपको रुढिवादी घोषित कर दिया जाता .मन लिया जाता है की आप पुराने खयालो के गए गुजरे भारतीय है। करीना को देखा फ़िल्म तसं के नसीला नसीला वेदों में देखा । सायद वह होड़ है देहा दिखने की । समीक्षकों की राइ है की जो बिकता है वही दिखता है उससे मैं गुरेज नही रखता .यो हमारी आत्मा कहती है कुछ तो सोचो ,हमें कोई बताएं वह पर सेंसर किसलिए है। खैर जाने दे .यदि आप इस भेदा चल में सामिल नही तो आप समझे की आप इस ज़माने में बहुत पीछे हो गएँ है। हमने आज पश्चिम का अन्धानुकरण कर लिया है हमारे अन्दर हद से ज्यादा महानगरीय संस्कृति हावी होती जा रही है वह आज महानगरो को छोड़ सहरो और कस्बो से होते हुये गावों तक पहुँच रहा है, बम्बई (राज ठाकरे जी ध्यान दे ) कल्कुत्ता को छोंड यह छोटे सहरो में अपना बसेरा बना रहा है । आब कसबो में भी ओल्ड एग होम का चलन बढ़ा है ,बेबी सन्तरो का चलन भी सुरु हुआ हैं । आज के दौर में हर कोई सहरी बाबु बनाना चाहता है .क्योंकि बोललीवुड ने उन्हें सपना दिखाया है सपना दिखाया है कमचोर प्रेमी का सपना दिखाया है टपोरी नायक का सपना दिखाया है अंडरवर्ल्ड दान का और आप देख सकते है हमारी नै पीढी तेरे नाम बन कर घूम रही है। आज के दौर में आप के पास सिक्स पैएक की बॉडी का होना जरुरी है , भाई सिक्स पैएक की बॉडी हुई तो आपको नंगा तो गुमाना पड़ेगा ही .रही बात सेलिब्रेटी बनने की तो उसको आप टीबी चनलो को छोड़ दे कोई न कोई चनेले आप को रातो रत सेलिब्रेटी बना देगी ॥ फिर मिलेंगे तब तक आप " दिल देवाना बोक्किंग अडवांस मांगे रे ........." सुनते रहे
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1 comment:
आपकी लेखन शैली काफ़ी ज्वलंत है.
सुनने में आया है कि जब अंग्रेजों ने भारत को अपना गुलाम बनाकर भारत में घूमना शुरू किया, तो उनको खजुराहो का मन्दिर दिखाई दिया. जिस अँगरेज़ अफसर ने उस मन्दिर को पहली बार देखा, उसने कहा "क्या घिनौनी जगह है? भारतीय संस्कृति में मन्दिर की दीवारों पर ऐसी अभद्रता कैसे कोई बना सकता है?" आज भी वही हो रहा है, बस अंग्रेजों की जगह हम आ गए हैं, और हमारी जगह अँगरेज़!
थोड़ा वर्तनी (स्पेल्लिंग) पर ध्यान दें तो पढने में आसानी होगी.
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